भारत ने कश्मीर पर पाकिस्तान से सौदेबाजी में कहाँ की चूक
वर्ष 1965 में गुजरात के कच्छ के रन को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ। तब वर्ष 1966 में सोवियत प्रधानमंत्री ने भारत के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अय्यूब खां को ताशकंद में वार्ता के लिए आमंत्रित किए। इसी वार्ता को ताशकंद समझौता कहा जाता है। वर्ष 1971 में इस समझौते को पाकिस्तान दरकिनार कर दिया।
इस समय पूर्वी पाकिस्तान में शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में बांग्ला स्वायत्तता का आंदोलन चल रहा था।तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति और सेना प्रमुख याह्म खान ने बंगालियों पर अत्याचार करने प्रारम्भ कर दिए। बंगाली घर-बार छोड़ भारतीय सीमा में प्रवेश करने लगे। शरणार्थियों की संख्या भारत में एक करोड़ तक पहुँच गई। इसी बीच पाकिस्तानी वायुसेना ने भारत के हवाई अड्डों पर भीषण बमबारी की। भारत को विवश होकर युद्ध आरम्भ करना पड़ा और अंततः बांग्लादेश स्वंत्रत हो गया तथा पाकिस्तानी सेना ने भारत के समक्ष आत्म समपर्ण कर दिया। भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली और भुट्टो के बीच 3 जुलाई, 1972 को शिमला में समझौता हुआ। इसमें एक-दूसरे केे विरुद्ध बल प्रयोग नहीं करना। एक-दूसरे के विरुद्ध प्रचार को रोकना। संचार संबंध की स्थापना, आवागमन की सुविधाएं देना, व्यापार और आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए प्रयास करना। दोनों देश की सेनाओं की अपने-अपने प्रदेशों में वापसी आदि पर समझौते हुए। शिमला समझौता भारत के समक्ष एक सुनहरा अवसर था कि कश्मीर पर पाकिस्तान से सौदेबाजी करने का था, जो हमेशा के लिए खो दिया।
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