त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सह वेबिनार ’’राष्ट्रीय शिक्षानीति: हिन्दी और अन्य मातृ भाषाएं’’ का हुआ शुभारम्भ

कौशल और शिक्षा को मातृभाषा से जोड़ना चाहिए: प्रो0 टी.वी. कट्टीमनी

प्रयागराज। मातृभाषा में शिक्षा वर्तमान समय का सर्वाधिक सराहनीय कार्य है। हमारे समाज में जो कौशल है उसको शिक्षा के साथ मातृभाषा से जोड़ना चाहिए। उपदेश देना ही नहीं आचरण भी करना चाहिए। यह बातें केन्द्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, आंध्र प्रदेश के कुलपति प्रो0 टी.वी. कट्टीमनी ने केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, भारत सरकार एवं नेहरू ग्राम भारती मानित विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सह वेबिनार ’’राष्ट्रीय शिक्षानीति: हिन्दी और अन्य मातृ भाषाएं’’ के प्रथम दिन मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए कहीं। उहोंने आगे कहा कि वाटर हार्वेस्टिंग की तकनीक भारतीय मातृभाषा की तकनीक है लेकिन लोग इसको अंग्रेजी के माध्यम से पढ़ाने की कोशिश करते हैं। देश में नौकरी पहले उनके लिए होनी चाहिए जिनकी शिक्षा मातृभाषा में हो और जो किसान का बेटा हो। जो इस देश में अपना भविष्य बनाना चाहते हैं उनके लिए मातृभाषा को अनिवार्य करना चाहिए। 
कुलाधिपति, श्री जे.एन मिश्र जी ने सभी का स्वागत करते हुए अपने आशीर्वचन में कहा कि विद्वानों ने इस महामारी में शिक्षा हेतु जो प्रयास किए हैं वह महत्वपूर्ण है। श्री मिश्र ने आगे कहा कि तमाम भेद-भाव समाप्त कर हम सभी को विनम्रता से आगे बढ़ना चाहिए। समागम के माध्यम से स्वागत, कटुता, कठोरता और कट्टरता समाप्त करना चाहिए तभी समाज का विकास सम्भव होगा। 
पूर्व निदेशक, एन.सी.ई.आर.टी. प्रो. जे एस राजपूत, ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारत में मातृभाषा के विकास में बाधाओं को दूर किया जाना जरूरी है। किसी भी शिक्षा नीति को समाज की प्रतिबद्धता एवं गतिशीलता लिए हुए होनी चाहिए। लर्निंग टू लिव टुगेदर-इसके लिए मातृभाषा को सर्वोच्च सम्मान की जरूरत होगी। व्यक्तित्व में परिवर्तित कर देना साथ-साथ मिलकर रहना सीखना मातृभाषा की विशेषता है। नेल्शन मंडेला ने कहा है, वी आर बार्न टू लव-हमारे हरियाणवी, तमिल, पंजाबी सहित अन्य भाषाओं में भी यही बात है कि हम घृणा के लिए पैदा नहीं होते हैं। प्यार करना हमारी नैसर्गिक प्रक्रिया है। जो अपनी मातृभाषा को प्यार नहीं करता वह कितना आगे बढ़ेगा। साक्षात्कार तथा रोजगार में मातृभाषा की स्थिति को देखना जरूरी है। मातृभाषा में आत्म सम्मान एवं विचारों की शक्ति होती है जिससे सृजनात्मकता आती है। 
इंदिरा गांधी जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के कुलपति प्रो0 श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने अपने सम्बोधन में कहा कि अपनी मातृभाषा से सदैव लगाव होना चाहिए यह हमारी पहली भाषा है, जो मां जैसी है। मौलिक चिंतन मातृभाषा में ही होता है। किसी भाषा से कोई विरोध नहीं है नई शिक्षा नीति 2020 में संकल्प से सिद्धि को और बढ़ावा दिया गया है। पहली बार शिक्षा का दर्शन और शिक्षा का उद्देश्य दोनों को आस्वस्त किया गया है। भाषा का सबसे बड़ा धर्म और लक्षण संप्रेषण है। संस्कृत पर पहली बार भारतीय शिक्षा नीति पर बल प्रदान किया गया। नई शिक्षा नीति में भ्रमण का सिद्धांत भी दिया गया है, इससे भारत को जानने का मौका मिलेगा। प्राइमरी पाठशाला से अनुसंधानसाला तक शिक्षण एवं शोध की व्यवस्था की गई है। मातृभाषा के अध्ययन से परंपरागत ज्ञान और कौशल से आगे बढ़ सकते हैं। वोकल फार लोकल से मातृभाषा को वैश्विकता की ओर ले जा सकते हैं। 
नेहरू ग्राम भारती मानित विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राम मोहन पाठक ने अपने सम्बोधन में कहा कि शिक्षानीति लागू करना शिक्षाविदों का कार्य है। उन्होंने आगे कहा कि विश्वविद्यालय की शाखाएं दूर-दूर तक फैले व फलीभूत हो। इसके लिए हमें कार्य करना चाहिए। शिक्षक-शिक्षा संकाय के डीन प्रो.के.के. तिवारी ने अपने वक्तव्य में राष्ट्रीय स्वाभिमान, संस्कृति एवं मूल्यों के लिए एक राष्ट्रभाषा हिंदी पर बल दिया। साथ ही कहा कि मातृभाषा भी अति आवश्यक है मातृभाषा से बालक की योग्यता का विकास होता है। मातृभाषा से आत्मविश्वास पैदा होता है। मातृभाषा अति आवश्यक है, मातृभाषा को उच्च शिक्षा तक कैसे ले जाया जाए इस पर विचार जरूरी। संगोष्ठी में बोलते हुए हिंदुस्तानी एकेडमी के अध्यक्ष डॉ. उदय प्रताप सिंह ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 आजाद भारत की पहली शिक्षा नीति है जिसे उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम तक सब ने स्वीकारा है। हमें जो जुबान मिली है उस मातृभाषा को आगे ले जाना है। ब्रज भाषा, भोजपुरी, बुंदेली और अवधि पर बहुत काम होना बाकी है। हमें अपने जीवन में मातृभाषा का उपयोग करना चाहिए जब तक आप अपनी मातृभाषा से प्रेम नहीं करेंगे व्यवहार में नहीं लाएंगे तब तक शिक्षा नीति का क्रियान्वयन उचित तरीके से नहीं हो पाएगा। मातृभाषा से जो सीख बच्चों को मिलती है वह जैविक होती है। शहर की संस्कृति अंग्रेजी की संस्कृति है जबकि गांव की संस्कृति अपनी संस्कृति है, अपनी भाषा से अपनी संस्कृति तक पहुंचना होगा।
स्वागत सम्बोधन प्रतिकुलपति डाॅ0 एस0सी0 तिवारी ने किया। संचालन डाॅ0 सव्यसाची ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव आर.एल.विश्वकर्मा ने दिया।
प्रथम दिन संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में डाॅ0 अखिलेश कुमार दुबे, डाॅ0 पृथ्वीनाथ पाण्डेय, डाॅ0 सपना दलवी, पवन भारती, प्रो0 सत्यपाल तिवारी ने अपने विचार रखे।

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