हर शब्द के अपने निहितार्थ होते हैं, इसका भान पत्रकारों के लिए जरूरीः कुलपति प्रो.संजीव


महात्मा गांधी केंद्रीय विवि के मीडिया अध्ययन विभाग की ई-गुरुमंत्र शृंखला की छठी कड़ी पत्रकारिता नैतिक उद्यम व सांस्कृतिक चेतना का विस्तारः बलदेव भाई  
 मीडिया की भाषा में आ रहे बदलाव और इसके प्रभाव पर संचारविदों ने किया मंथन 


भाषा की नदी में जानबूझकर बाढ़ लाने की कोशिश खतरनाक संकेतः उमेश उपाध्याय 



मोतिहारी। क्या मीडिया की भाषा में आ रहा बदलाव समाज के व्यापक हित में है? क्या यह हमारी सभ्यता-संस्कृति और हमारे आचार-व्यवहार को प्रभावित करने के साथ हमारे स्वत्व पर हमला है? क्या मीडिया के छात्रों और युवा पत्रकारों के लिए इस बदलाव में सबक जैसी कोई बात है? क्या इस बदलाव को रोका जा सकता है? महात्मा गांधी केंद्रीय विवि मोतिहारी के मीडिया अध्ययन विभाग के ई-गुरुमंत्र शृंखला की छठी कड़ी में गुरुवार को इसी प्रश्न पर विशेषज्ञों ने मंथन किया। इस वैचारिक अनुष्ठान में पांचजन्य सहित विभिन्न राष्ट्रीय दैनिकों के संपादक रहे प्रख्यात पत्रकार सह रायपुर के कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विवि के कुलपति प्रो.बलदेव भाई शर्मा, प्रख्यात संचारविद और रिलायंस के मीडिया निदेशक उमेश उपाध्याय और महात्मा गांधी केंद्रीय विवि के कुलपति प्रो.संजीव कुमार शर्मा ने अपने विचार रखे। 
राष्ट्रवादी पत्रकारिता के सशक्त हस्ताक्षरों में एक प्रो. बलदेव भाई शर्मा ने कहा कि मीडिया में भाषा के बदलाव जैसे प्रकरण पर विचार बहुत सुखद संकेत है। कहा कि भाषा में परिवर्तन केवल शब्दों का हेरफेर मात्र ही नहीं है, इसके पीछे कुत्सित मानसिकता काम करती है। पत्रकारिता केवल छिद्रान्वेषण का विषयवस्तु नहीं है, यह लोक कल्याणकारी दृष्टि से जुड़ा सामाजिक दायित्व बोध है। यह बदलाव और विस्तार के बीच दिशाबोध देने का प्रकल्प है। इसलिए पत्रकारों, विशेषकर पत्रकारिता की शिक्षा प्राप्त कर रहे युवाओं को भाषा के अनुप्रयोग पर गंभीरता से विचार करना होगा। मूल से काटने वाली और भारतीय चेतना को नष्ट करने वाली प्रवृत्तियों को पहचानना बहुत जरूरी है। समाचार हमारी सामाजिक चेतना का परिष्कार करते हैं इसलिए क्या फर्क पड़ता है वाले दृष्टिकोण से बचना जरूरी है। पत्रकारिता सामाजिक दायित्वबोध है, सांस्कृतिक चेतना का विस्तार है। 

अध्यक्षीय संबोधन में कुलपति प्रो.संजीव कुमार शर्मा ने कहा कि शुद्धता और समकालीनता के आग्रह में समन्वय करना आवश्यक है। हर शब्द के निहितार्थों का ध्यान रखना उचित होता है। शुद्धता के आग्रह को रुढि़वादिता मानना गलत है। संस्कृत के कवि वाणभट्ट और उनके दो पुत्रों के उद्धरण से कुलपति ने यह स्पष्ट किया कि भाषा हमें यह दृष्टिबोध देती है कि हम किस बात को कैसे समझ रहे हैं? हमारे शब्द सम्यक-सुसंगत हों और उपयुक्त हों तो अर्थ ज्यादा स्पष्ट हो जाता है। भाषा की दृष्टि से आ रहे बदलावों को मीडिया के विद्यार्थियों को और सतर्क होकर देखना होगा। युवा विद्यार्थी इस बात पर अभी से विचार करें तो उनकी शिक्षा सार्थक होगी। अंग्रेजी के बारे में यह धारणा है कि यह सबसे समृद्ध है जबकि उसमें लैटिन और ग्रीक मिलाकर दस लाख से ज्यादा शब्द नहीं हैं जबकि हिंदी में एक करोड़ से ज्यादा शब्द सहजता में मिलते हैं। संस्कृत में तो चार करोड़ से ज्यादा शब्द हैं। जर्मन तो संस्कृत से ही निकली है। भाषा हमारी राष्ट्रीय चेतना की प्रतीक है इसका ध्यान रखने की जरूरत है। 

मुख्य वक्ता उमेश उपाध्याय ने  हिंदी के यशस्वी साहित्यकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल का उद्धरण देते हुए कहा कि समाज की चित्तवृत्तियों में परिवर्तन देश-काल की परिस्थितियों में बदलाव के कारण होता है और इसे दिशा देने में मीडिया की अहम भूमिका होती है। भाषा चलायमान होती है और इसमें निरंतर परिवर्तन स्वाभाविक है किंतु देखना होगा कि यह बदलाव सहज हो। अपनी संस्कृति, अपने संस्कार और अपनी विरासतों को संजोने का माध्यम भी यही भाषा है। इसलिए भाषा की नदी में जानबूझकर बाढ़ लाने के प्रयास अच्छे संकेत नहीं हैं। यह प्रकारांतर से हमारे स्वत्व पर हमला है जिसे बहुत गहराई से समझना होगा। लेकिन हमें अपनी विरासत को बचाकर रखना है। समस्या अंग्रेजी से नहीं, अंग्रेजियत से है। यह आत्महीनता की बोधक है। यह चित्तवृत्ति पर हमला है। तकनीक में पिछड़ना भी बहुत ब़ड़ी बाधा रही है। उन्होंने कहा कि तकनीक ही आज की भाषा भी तय कर रही है इसलिए मीडिया संस्थानों को ऐसे पाठ्यक्रम बनाने होंगे जिसमें तकनीक के राजनीतिक और सांस्कृतिक पहलू पर भी गौर किया जाए। अपनी संस्कृति, अपने साहित्य और अपनी सभ्यता को सुरक्षित रखने के लिए हमें मन पर नियंत्रण की कोशिश गंभीरता से करनी होगी और इसमें मीडिया संस्थानों की बड़ी भूमिका है। युवावर्ग को आसन्न खतरों को समझना होगा, तकनीक के दास मत बनिए, इनपर अपना नियंत्रण कायम कीजिए, यही समय की पुकार है। 

प्रतिकुलपति प्रो.जी.गोपाल रेड्डी ने मीडिया के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा मीडिया में भाषा का महत्व बहुत अधिक है। इसी से जनता का जुड़ाव होता है। राष्ट्रीयता के विकास में मीडिया का उल्लेख उन्होंने प्रमुखता से किया।

इससे पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए मीडिया अध्ययन विभाग के वरिष्ठ शिक्षक डा.अंजनी कुमार झा ने मुख्य अतिथि प्रो.बलदेव भाई शर्मा, मुख्य वक्ता उमेश उपाध्याय और विवि के कुलपति प्रो,संजीव कुमार शर्मा एवं प्रति कुलपति प्रो. जी. गोपाल रेड्डी के बहुआयामी व्यक्तित्व से परिचय कराया। 
आभार प्रदर्शन करते हुए मीडिया विभाग के अध्यक्ष डा.प्रशांत कुमार ने कहा कि गुरुमंत्र शृंखला की आज की कड़ी अभिभूत करने वाली रही है जिसमें भाषा के प्रश्न पर इतनी गंभीरता से विचार-विमर्श हुआ। उन्होंने विवि के कुलपति और प्रतिकुलपति के साथ मुख्य वक्ता उमेश उपाध्याय और बलदेवभाई शर्मा का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इनके संबोधन से पत्रकारिता के विद्यार्थियों को अलग दृष्टि मिली है। उन्होंने कहा कि गुरुमंत्र शृंखला की आगे और कड़ियां प्रस्तावित हैं तथा इसमें सामने आए विचारों को पुस्तक का रूप देने की योजना है।    
कार्यक्रम संचालन के दौरान करते हुए ई-गुरुमंत्र शृंखला के संयोजक डा. साकेत रमण ने भगवद्गीता का उद्धरण देते हुए कहा कि अक्षर का मतलब ही है कि जो शाश्वत है। शब्द ब्रह्मस्वरूप होते हैं। 
कार्यक्रम में हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो.राजेंद्र सिंह, कार्यक्रम के आयोजन सचिव डा.परमात्मा कुमार मिश्रा, डा.सुनील दीपक घोडके और डा.उमा यादव, पीआरओ शेफालिका मिश्रा सहित सभी शोधार्थी और विद्यार्थी मौजूद थे।

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