आचार्य निशांतकेतु जी राष्ट्रीय चेतना के ख्यात कवि और कुशल कथाकार -प्रो. अरुण कुमार भगत
मोतिहारी। हिंदी के कुशल-कथा-कोविद आचार्य निशांतकेतु जी की 88वें जन्मदिवस के सुअवसर पर आज यहाँ ऑनलाइन माध्यम द्वारा एक सारस्वत साहित्यिक अनुष्ठान का आयोजन किया गया। 'आपका हरकारा' समायोजित इस समारोह में राष्ट्रीय ख्याति के अनेक विद्वानों ने विचार व्यक्त किये। सुप्रसिद्ध साहित्यकार और बिहार लोक सेवा आयोग के माननीय सदस्य प्रो. अरुण कुमार भगत मुख्य अतिथि रहे। नई धारा, पटना के सम्पादक प्रो. शिवनारायण मुख्य वक्ता रहे। केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष आदरणीय श्री अनिल जोशी जी सादर सन्निधान प्राप्त हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापिका आदरणीया प्रो. कुमुद शर्मा ने की।
इस अवसर पर माननीय प्रो. भगत ने कहा कि आचार्य निशांतकेतु जी राष्ट्रीय चेतना के ख्यात कवि और कुशल कथाकार हैं। वे एक ऐसे श्रेष्ठ और ज्येष्ठ रचनाकार एवम समालोचक हैं जिनमें सु-कवि, कुशल कथाकार, सुप्रसिद्ध उपन्यासकार, सुतीक्ष्ण मेधा के समालोचक, लब्धप्रतिष्ठ संस्मरणकार, विख्यात वैयाकरण, सुप्रसिद्ध कोशकार, चर्चित निबंधकार और समर्थ सम्पादक के रूप में मान्य तथा लोक-समादृत हैं। कहने का तात्पर्य यह कि उनके व्यक्तित्व और कृतित्व में नव-रत्न की झाँकी मिलती है।
अगले वक्ता के रूप में प्रो. शिवनारायण ने कहा कि बहुआयामी प्रतिभा के धनी आचार्य निशांतकेतु हिंदी साहित्य के साथ-साथ अध्यात्म, कामशास्त्र, तंत्रविद्या और शाक्त उपासना के राष्ट्रीय स्तर के धुरिकीर्तनीय औघड़ विद्वान हैं। उनकी शब्द साधना अद्वितीय है। वे बिहार में पंडित शिवचन्द्र शर्मा, आचार्य नलिनविलोचन शर्मा, आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा की विद्या परम्परा के आचार्य रहे और सदैव अपने छात्रों को सशक्त करने के लिए सक्रिय रहे। आचार्यश्री के परिवार में शैव, वैष्णव एवं शाक्त उपासना पद्धति की मिश्रित परम्परा रही है, जो उनके संपूर्ण रचना संसार में नजर आता है।
आचार्य निशांतकेतु की कारयित्री एवं भावयित्री प्रतिभाने हिंदी साहित्य की परंपरागत जमीन को तोड़ते हुए चिंतनप्रज्ञ साहित्य की विभिन्न विधाओं में नयी परंपरा विकसित की,जिसका सम्यक मूल्यांकन होना अभी शेष है।
आगे आदरणीय श्री जोशी ने कहा कि निशांतकेतु जी असाधारण आध्यात्मिक व्यक्तित्व हैं। जिनके प्रेरणा से देश में संस्कृति और अध्यात्म की बयार बही। बिहार के सांस्कृतिक और साहित्यिक जीवन में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। उनके जीवन और उनके विचारों से कई पीढ़ियों ने प्रेरणा ग्रहण की।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक आदरणीय डाॅ. अशोक कुमार ज्योति ने कहा कि "वर्तमान समय में हिंदी में आचार्य निशांतकेतु के समकक्ष विद्वान् अंगुलिगण्य ही हैं। वे हिंदी-साहित्य के ऐसे मूर्धन्य मनीषा हैं, जिनके ज्ञान-भांडार में लोक और शास्त्र का अद्भुत समन्वय है। वे 'रोने की कला' पर भी लिखते हैं और 'हिंदी नव्य निरुक्ति-कोश' तथा 'सुगम तंत्रागम' पर भी लिखते हैं। वे जब 'जंगल, जानवर और आदमी' का तुलनात्मक मूल्यांकन करते हैं तो प्रकृति और जीव-जगत् की जैसी अन्योन्याश्रितता रेखांकित करते हैं, वैसी विज्ञानियों ने भी न की होगी। वे जब शब्दों की व्युत्पत्ति के बारे में बताने लगते हैं तो लगता है, हमारे सम्मुख महर्षि पाणिनि का नवीन संस्करण उपस्थित हो गया हो। आचार्य निशांतकेतु के चिंतन-पक्ष की उदात्तता को ध्यान में रखते हुए ही लगभग दो दशक पूर्व आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री ने उन्हें 'पाटलिपुत्र का नवीन महर्षि चाणक्य' कहा था। आचार्य निशांतकेतु बिहार के गौरव-मनीषी हैं।"
इसके बाद वक्ताओं में अगले वक्ता दिल्ली विश्वविद्यालय में शोधार्थी भूपेन्द्र कुमार भगत ने आचार्य निशांतकेतु की विषय-वस्तु और भाषा-शैली पर चर्चा करते हुए उनकी रचना-दृष्टि पर प्रकाश डाला। उन्होंने आगे कहा कि निश्चित तौर पर आचार्य निशांतकेतु हिंदी साहित्य ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारतीय वाङ्गमय के 'ध्रुवतारा' हैं जो स्वयं की लेखनी के प्रकाश से प्रकाशित हैं। उनकी लेखनी में भारतीयता के, राष्ट्रीयता के वे सभी तत्व मौजूद हैं जो समाज को नई धारा और नई दिशा देने के साथ साथ अपनी प्राचीनता, परम्परा और समृद्ध ज्ञान-परम्परा पर गर्व से भर देने के लिए पर्याप्त हैं।
इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के सहायक प्राध्यापक श्री अविनाश कुमार ने कहा कि आचार्य निशांत केतु जितने बड़े लेखक हैं उतने ही बड़े वक्ता भी हैं। उनके इस भाषण कला को देखकर ऐसा लगता है मानो उन्होंने अपने श्रोताओं को सम्मोहित कर लिया हो। आचार्य जी के लेखन में भी उनका यह गुण देखा जा सकता है। लेकिन इन सबके बावजूद आचार्य जी को जो ख्याति मिलनी चाहिए थी वह नहीं मिली। यह हम सभी का दायित्व है कि हम इस दिशा में कार्य करें तथा उनकी रचना को लोगों तक पहुँचाएं।
इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. श्री दर्शन पांडेय ने कहा कि आचार्य निशांत केतु हिंदी के श्रेष्ठ साहित्यकार हैं। शास्त्रीय परंपरा के मनीषी विद्वान हैं। आचार्य निशांत केतु जी का साहित्य वर्तमान समय के अन्य रचनाकारों के मुकाबले एक विशेष स्थान रखता है। आचार्य जी ने अपने समय और समाज को अपनी रचनाओं में बहुत ही प्रखर रूप में चित्रण किया है।
आचार्य जी ने अपने साहित्य के माध्यम से सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं राष्ट्रीय स्तर पर निरंतर बदलते परिवेश में आज की स्थितियों को सूक्ष्मता से मूल्यांकित किया है।
आचार्य निशांत केतु जी का रचना संसार बहुत व्यापक और बहुआयामी है। आप युगीन संदर्भों से जुड़े हुए रचनाकार हैं, यही कारण है कि आपकी रचनाओं में अपने युग का सच प्रभावी रूप में प्रस्तुत हुआ है।
प्रो. कुमुद शर्मा ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि प्रो. अरुण कुमार भगत और डॉ. अशोक कुमार ज्योति दोनों ही श्रद्धेय आचार्य निशांतकेतु के गुणों और व्यवहारों से सुसज्जित और उस परम्परा आगे बढ़ाते हुए नजर आते हैं। आपने आचार्य जी के साथ के संस्मरणों को साझा करते हुए उनसे अपनी पहली मुलाकात की चर्चा करते हुए उनकी वेशभूषा का वर्णन किया। आपने आचार्य निशांतकेतु जी की ज्योतिष की समझ और उनकी वक्तव्य-शैली की भी सार्थक चर्चा की। इसके साथ ही आपने आचार्य जी के स्वस्थ और शतायु होने की कामना करते हुए अपनी बात समाप्त की।
इसके साथ ही अजय अनुराग जी ने सफल मंच संचालन किया और धन्यवाद ज्ञापन आपका हरकारा के नवीन नव्य जी ने किया।। आभासी पटल पर देश भर से सैकड़ों शोधार्थी, छात्र और गण्यमान्य लोग जुड़े।।
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