हिंदी पत्रकारिता क्षेत्र में योगदान के 50 वर्ष पर मुंबई में राम मोहन पाठक का सम्मान
सम्पादक के मस्तिष्क का कोई विकल्प नहीं
वरिष्ठ पत्रकार, महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ के महामना मदनमोहन मालवीय पत्रकारिता संस्थान के पूर्व निदेशक एवं पत्रकारिता विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो0 राम मोहन पाठक के पत्रकारिता क्षेत्र में कार्य तथा योगदान के 50 वर्ष पूर्ण होने पर मुंबई में पत्रकारों तथा सभी पाँच शीर्ष पत्रकार संगठनों के पदाधिकारियों द्वारा प्रोफेसर पाठक का विशेष सम्मान किया गया। प्रतिष्ठित मुंबई प्रेस क्लब के वी0 टी0 स्थित हाल में आयोजित कार्यक्रम में मुंबई-महाराष्ट्र के प्रमुख पत्रकार संगठनों-मुंबई प्रेस-क्लब, मुंबई मराठी पत्रकार संघ, मुंबई मंत्रालय पत्रकार संघ, मुंबई हिंदी पत्रकार संघ के अध्यक्षों तथा पदाधिकारियों ने प्रोफेसर पाठक का सम्मान किया।
सम्मान के प्रति आभार व्यक्त करते हुए प्रो0 राममोहन पाठक ने कहा कि पत्रकारिता की दुनिया में तकनीक की भूमिका चाहे जितनी बढ़ जाए, लेकिन संपादक के मस्तिक का कोई विकल्प नहीं है। प्रो0 पाठक ने मुंबई के पत्रकारों और हिंदी-भाषा-साहित्य से जुडे़ मुंबई के प्रमुख लोगों द्वारा प्रेस क्लब में अपने सम्मान में आयोजित समारोह के लिए आभार व्यक्त किया।
हिन्दी पत्रकारिता में पिछले पांच दशक से सक्रिय डॉ0 राममोहन पाठक ने 50 वर्ष पहले उस दौर की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘धर्मयुग‘ एवं दैनिक नवभारत टाइम्स से अपनी पत्रकारिता की शुरूआत की थी। उन्होंने कहा कि समय बदलता रहा और हिंदी पत्रकारिता भी। लेकिन संपादक की सत्ता हर दौर
में कायम रही है। जिस दिन यह खत्म होगी, उस दिन पत्रकारिता खत्म हो जायेगी, क्योंकि तकनीक वह काम नही कर सकती, जो एक संपादक अपने मस्तिष्क के जरिए करता है। कथाकार, पत्रकार हरीश पाठक ने कहा कि आज बाबूराव विष्णु पराड़कर एवं बनारसीदास चतुर्वेदी जैसे संपादक की
परंपरा खत्म हो रही है, लेकिन यह सम्पादक की सत्ता की पुनर्स्थापना का दौर है। कई अखबारों में संपादक रहे नीलकंठ पारटकर ने कहा कि आंचलिक पत्रकारिता ही आज भी जिंदा और जीवंत है, और यही देश की सही तस्वीर पेश कर रही है। नवभारत टाइम्स, मुंबई के पूर्व संस्थापक शचीन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि हिंदी पत्रकारिता में चुनौतियां कल भी थीं, आज भी हैं और कल भी रहेंगी। मुंबई प्रेस क्लब के चेयरमैन गुरबीर सिंह का मानना था कि अंग्रेजी की तुलना में और भाषई पत्रकारिता ज्यादा व्यापक है। स्तंभकार विमल मिश्र ने कहा कि वाराणसी में दैनिक ‘आज‘ से ही मैंने भाषा के संस्कार सीखे। अभिलाष अवस्थी ने ‘धर्मयुग‘ के दौर को याद करते हुए कहा कि डॉ0 धर्मवीर भारती का अनुशासन ही मेरे जीवन का आधार बन गया। अनुराग त्रिपाठी ने कहा कि आज हमें हर पल सक्रिय और सतर्क रहना है। संजीव निगम ने डॉ0 राममोहन पाठक से सम्बन्धित अनेक संस्मरण याद करते हुए कहा कि मैंने संबंधों का निर्वहन राममोहन जी से सीखा है।
महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के निवर्तमान कार्याध्यक्ष डॉ0 शीतला प्रसाद दुबे ने अकादमी के उन नियमों पर सवाल खड़ा किया, जिनमें पत्रकारिता के पुरस्कारों का पैमाना पत्रकारिता कार्य नही बल्कि पत्रकारिता पर पुस्तक लेखन है। ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन‘ के निदेशक एवं राजभाषा विभाग, पश्चिम क्षेत्र के पूर्व उपनिदेशक डॉ0 एम0एल0 गुप्ता ‘आदित्य‘ ने मीडिया में हिंदी के अंग्रेजीकरण की प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि जिस प्रकार हिंदी मीडिया चलते-फिरते जीवित हिंदी शब्दों के स्थान पर जबरन अंग्रेजी शब्द स्थापित कर रहा है, हिंदी के लिए चिंताजनक है। साहित्यकार अरविंद शर्मा राही ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए।
महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री एवं भाजपा नेता कृपाशंकर सिंह तथा ए0बी0पी0-भाषा की चर्चित एंकर सुश्री कविता राणे ने प्रो0 पाठक को बुके एवं स्मृति चिहन प्रदान कर सम्मानित किया।
इस मौके पर द्विजेन्द्र तिवारी, आदित्य दुबे, विजय सिंह, अभय मिश्र, नवीन नयन, सर्वेश पाठक, बृजमोहन पांडेय, अरविंद राही, कृपाशंकर सिंह डॉ0 राजेन्द्र सिंह, हरि मृदुल, श्रीश उपाध्याय, मराठी पत्रकार संघ के अध्यक्ष नरेन्द्र वाबले एवं मंत्रालय-विधिमंडल वार्ताहार संघ के अध्यक्ष मंदार पारकर मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन ओमप्रकाश तिवारी ने किया।
इस अवसर पर स्वर्गीय बाबूराव विष्णु पराड़कर के गाँव पराड़ में पराड़कर स्मारक के लिए प्रो0 पाठक के प्रयासों की सराहना करते हुए महाराष्ट्र शासन द्वारा स्वीकृत अनुदान तथा भूमि पर शीघ्र स्मारक निर्माण तथा नरीमन प्वाइंट, मंुबई में स्थित महाराष्ट्र शासन के स्थित मंत्रालय भवन में पराड़कर जी के तैलचित्र अनावरण सम्पन्न कराने का संकल्प व्यक्त किया गया।
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