बुद्ध और गांधी का चम्पारण: अतीत और वर्तमान

(डॉ श्याम कुमार झा)। बिहार के चम्पारण संभाग में दो जिलें स्थित  है। पूर्वी चंपारण जिले का मुख्यालय मोतिहारी और पश्चिम  चम्पारण का बेतिया है। गाँधीजी ने 1917 में यहीं से नील की खेती व अंग्रेजों के अत्याचारी शासन के खिलाफ सशक्त चम्पारण आन्दोलन  की शुरुआत की थी। मोतिहारी की विशेषता है कि यहाँ विविध सम्प्रदायों के लोग आपस में परस्पर भाईचारे के साथ रहते हैं ।ग्रामीण आबादी मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है। ऐसे तो बिहार के अन्य शहरों की तरह यहाँ भी चीनी मिल हुआ करता था, लेकिन बरसों से मिल के बंद होने के कारण अगर छोटे-मोटे प्लाईवुड एवं चावल के मिलों को छोड़ दें, तो मोतिहारी एवं आसपास के इलाके में कोई बड़ा उद्योग नहीं है।अतः बिहार के दूसरे जिलों की तरह यहाँ की भी अधिसंख्य आबादी दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, गुजरात,मुम्बई तथा दक्षिण भारत के विभिन्न हिस्सों में जाकर रोजी रोटी के लिए प्रवास करती है। बिहार की अपनी एक विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत रही है। स्वतन्त्रता आंदोलन में बिहार की  विशेष भूमिका थी। बाबू वीर कुंवर सिंह के बाद चम्पारण आंदोलन के गांधीजी के सहकर्मी सत्याग्रही डॉ राजेंद्र प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिंह, राज कुमार  शुक्ल जैसे लोगों ने तन, मन और धन से भारत को स्वाधीन करने में अपनी भूमिका का निर्वहन किया था। इनमें से अधिकांश लोगों की कर्मभूमि चम्पारण और मोतिहारी रही है। 

        मोतिहारी  से 30 किलोमीटर की दूरी पर बरहरवा लखनसेन में गांधी जी ने सन1917 में बुनियादी विद्यालय की शुरुआत की थी। भितिहरवा का प्रसिद्ध गाँधी आश्रम  बिहार पर्यटन का एक मुख्य केंद्र है।  चन्द्रहिया में गाँधी स्मारक निर्माण का  कार्य अन्तिम चरण में है। मोतिहारी से एक 100 किलोमीटर दूर स्थित भितहरवा आश्रम तथा 170 किलोमीटर की दूरी पर वाल्मीकि नगर का बाघ संरक्षित क्षेत्र बिहार पर्यटन का मुख्य केंद्र है ।मोतिहारी में कई शिक्षण संस्थान हैं, जिसमें महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय प्रधान है। इसके साथ ही केंद्रीय सरकार के द्वारा संचालित कृषि महाविद्यालय तथा दीनदयाल उपाध्याय कृषि शोध संस्थान भी मोतिहारी  के समीप स्थित पिपराकोठी में स्थित है।  बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कई महाविद्यालय जैसे मुंशी सिंह महाविद्यालय, एलएनडी महाविद्यालय, कर्पूरी महाविद्यालय, महिला कॉलेज तथा सरकारी इन्जीनियरिंग  कॉलेज मोतिहारी नगर में स्थित है। अब तो बिहार सरकार ने मोतिहारी में मेडिकल कॉलेज की स्थापना का  निर्णय भी ले चुकी है, जो इस क्षेत्र के लोगों के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के निदान हेतु मील का पत्थर साबित होगा। 
        बिहार के छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए  बाहर जाना पड़ता है। शहर के लोगों एवं अभिभावकों का यह अभिमत है कि यहाँ और अच्छे  उच्च माध्यमिक स्तरीय विद्यालय तथा  स्नातक स्तरीय तकनीकी शिक्षा से युक्त  प्राइवेट एवं सरकारी संस्थानों की अभी भी आवश्यकता है, जिससे यहाँ के बच्चे बाहर पलायन न करें । बिहार की सबसे बड़ी त्रासदी शिक्षा में गुणवत्ता का अभाव रहा है। अवसर मिलने के बाद दायित्व प्राप्त सरकारी कर्मचारी और शिक्षक अपनी भूमिका का उस प्रकार पालन नहीं करते, जिसकी अपेक्षा उनसे की जाती है। प्राथमिक स्तर से लेकर महाविद्यालय स्तर तक व्यवस्था सम्बन्धी कुछ त्रुटियां हैं ,जिसके समाधान की आवश्यकता है।  गुणवत्तापूर्ण शिक्षा यहाँ के बच्चे  प्राप्त कर सकें और उन्हें उच्च शिक्षा के लिए बाहर न जाना पड़े। इस विषय में सरकार और नागरिकों को मिलकर काम करना होगा।

       स्वास्थ्य में भी मोतिहारी  देश के अन्य नगरों एवं राज्यों की तुलना में पीछे हैं। गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा व्यवस्था के लिए पास के शहर मुजफ्फरपुर या पटना तथा  उन्नत चिकित्सा हेतु  लोगों को बिहार से बाहर जाना पड़ता है। कोविड ने सम्पूर्ण विश्व को एक संदेश दिया है कि जब तक हम चिकित्सा व्यवस्था को उन्नत नहीं बनाएंगे, कोरोना जैसी त्रासदी हमारी पूरी सामाजिक संरचना को भंग करती रहेगी, जिसका उदाहरण 2020 -2021 में हम सबने देखा है। प्रशासन से अनुरोध है कि  सरकारी तंत्र में  जो व्यवस्थाएँ स्वाधीनता के बाद से चली आ रही है, उसे दुरुस्त करने की जरूरत है, जिससे आम जनता को जरूरत के कार्यों  के निष्पादन  में किसी तरह की तकलीफ न हो। किसी भी कल्याणकारी राज्य एवं शासन का मुख्य उद्देश्य भी यही है। 

        संवेदनशील पाठकों का ध्यान  ट्रैफिक  की समस्या के प्रति आकृष्ट करना चाहता हूँ। ऐसे तो ट्रैफिक की समस्या बिहार के बाहर भी देखने को मिलती है, किन्तु समस्त बिहार वासियों से अनुरोध हैं कि जिस तरह चंपारण आंदोलन के माध्यम से देश को दिशा दिखाने का कार्य हमारे पूर्वजों ने गांधी जी के नेतृत्व में किया था, ठीक उसी तरह क्यों न हम सड़क सुरक्षा के मामले में भी आवागमन को सुचारू रूप से बनाए रखने के लिए सम्पूर्ण देश का ध्यान आकृष्ट करें। 

        बिहार सरकार के अधिकारियों एवं प्रतिनिधियों का ध्यान इस ओर अपेक्षित है की जो ग्रामीण सड़कें मनरेगा के तहत बनाई जा रही है, विशेषकर सीमेंट कंक्रीट से बनाए गए सड़कों के दोनों ओर मिट्टी भरने का काम करने की आवश्यकता है। ऐसा नहीं होने से 15 -20 फीट की सड़कें बनाई तो जा रही है, लेकिन उसके दोनों ओर  बड़ा गड्ढा होने से यातायात  में बड़ी परेशानी होती है। रात्रि  में किसी भी ग्रामीण सड़क से गुजरते हुए आए दिन एक्सीडेंट की घटनाएं घटती है। जनप्रतिनिधियों को भी इस विषय  में जागरूक होने की आवश्यकता है, क्योंकि सरकार कोई भी योजना जनता की सुविधा के लिए ही  तो बनाती है। जनप्रतिनिधियों का कार्य सड़क निर्माण  के विषय  में तब तक समाप्त नहीं होता, जब तक उस पर आवागमन सुचारू ढंग से प्रारम्भ न हो जाए। कार्य की  गुणवत्ता देखना अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों का काम है। 

       सड़क के किनारे शहर में लगी हुई बिजली के खम्भों में कतिपय एलईडी लाइट दिन में भी जलती देखी जाती है। जिसका उदाहरण हवाई अड्डा चौक से बाईपास की ओर आते हुए बरियारपुर में प्रत्यक्ष देखने को मिल सकता है। इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। 

        सड़क के दोनों ही किनारे सरकार के द्वारा विविध समय में योजनाओं के माध्यम से वृक्षारोपण किया गया है। जल जीवन हरियाली पर बिहार सरकार का विशेष ध्यान है । सरकार के द्वारा लगाए गए पेड़ो को लोग अज्ञानतावश मवेशियों से नष्ट करवा रहे हैं। आने वाले समय में हरियाली की कितनी आवश्यकता है यह किसी से छुपा नहीं है। पारिस्थितिकी संतुलन के लिए भी जल जीवन हरियाली आवश्यक है। भूगर्भ जल के स्रोत के संतुलन को बनाए रखने के लिए भी वनस्पतियों की भूमिका सिद्ध है। अतः सरकार के द्वारा लगाए गए वृक्षों का संरक्षण आम नागरिकों, स्थानीय निकायों तथा  जनप्रतिनिधियों का सम्मिलित  दायित्व  होना चाहिए।
     एक और विषय जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, नागरिकों का कर्तव्य। हम नागरिक अधिकारों की बात तो करते हैं लेकिन इसके साथ-साथ संविधान में नागरिकों के कर्तव्यों की बात भी कही गई है,उस पर चर्चा नहीं करते। नागरिकों का प्रधान कर्तव्य है, राष्ट्रीय संपदा का संरक्षण करना। जिस प्रकार सड़कों के किनारे लगाए गए पेड़ों का संरक्षण हमारे कर्तव्य के अधीन आता है, उसी तरह चाहे कोई भी सरकारी संपदा क्यों न हो उसको नुकसान नहीं पहुँचाना, नागरिकों के कर्तव्य पालन की पहली सोपान है। इस विषय पर शिक्षण संस्थानों में व्यवहारिक कार्यशालाएँ होनी चाहिए। कई बार पुस्तकों में लिखी हुई बात व्यवहारिक स्तर पर छात्रों को समझ में नहीं आती। अतः आवश्यकता है सरकारी संपत्ति के संरक्षण के प्रति सरकार एवं समाज को मिलकर काम करने की। ऐसा करने से निश्चित रूप से बिहार प्रदेश की छवि सकारात्मक होगी और जिस प्रकार चम्पारण आंदोलन के द्वारा बिहार ने कभी पूरे देश को मार्ग प्रशस्त करने का कार्य किया था, उसी प्रकार बिहार सामाजिक मुद्दों के प्रति संवेदनशील होकर सम्पूर्ण देश को राह दिखाने का कार्य कर सकता है । यदि ऐसा सम्भव हो पाता है,तो भगवान बुद्ध और महात्मा गांधी की कर्मभूमि पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र सिद्ध होगा।

डॉ श्याम कुमार झा
एसोसिएट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग
महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी

Comments

Popular posts from this blog

बेहतर स्क्रिप्ट राइटर के लिए कल्पनाशीलता जरूरी : फिल्म निर्देशक रवि भूषण

डॉ. आंबेडकर का पत्रकारिता में अद्वितीय योगदान-प्रो. सुनील महावर

डिजिटल प्लेटफॉर्म पर बिना जांच-पड़ताल के न करें सूचनाओं का प्रसारण : सुमिता जायसवाल