भारत लोकतंत्र की जननी है थीम पर व्याख्यानों का हुआ आयोजन

मोतिहारी। महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार के समाज विज्ञान संकाय के तत्वावधान में 26 नवम्बर 2022 को संविधान दिवस के अवसर पर "भारत: लोकतंत्र की जननी" विषयक थीम पर दो विशिष्ट व्याख्यानों का आयोजन किया गया।
प्रो. आनंद प्रकाश, माननीय कुलपति, महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार के मार्गदर्शन में कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. प्रणवीर सिंह, विश्वविद्यालय के कुलानुशासक और अध्यक्ष जीव विज्ञान विभाग ने की।
विशिष्ट वक्ता के रूप में प्रो. के. टी. एस. सराव, आचार्य एवं पूर्व अध्यक्ष बौद्ध अध्ययन विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली एवं प्रो. विश्वनाथ मिश्र, आचार्य, राजनीति विज्ञान, आर्य महिला पी. जी. कॉलेज, काशी हिंदू विश्वविद्यालय,वाराणसी ने सभी को संबोधित किया।
कार्यक्रम का शुभारम्भ माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ, तत्पश्चात अतिथियों स्वागत पुष्पगुच्छ और पादप भेंट कर किया गया। इसके बाद संविधान की उद्देशिका का वचन कर शपथ ली गई। 
कार्यक्रम के संयोजक प्रो. सुनील महावर, अधिष्ठाता, समाज विज्ञान संकाय, महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार ने सभी का स्वागत किया। स्वागत वक्तव्य देते हुए प्रो. महावर ने कहा कि वर्तमान एवं आने वाली पीढ़ी के लिए लोकतंत्र की समृद्ध परंपरा को जानना एवं उसे सहेजना परम आवश्यक है। लोकतंत्र की समृद्ध विरासत के संरक्षण की जिम्मेदारी युवाओं एवं शोधकर्ताओं की है।
विशिष्ट वक्ता के रूप में प्रो.के.टी.एस. सराव ने प्राचीन भारतीय बुद्धवाद में मौजूद लोकतंत्र पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। प्रो. सराव ने कहा कि पश्चिमी में जो लोकतंत्र के उद्भव का दावा किया जाता है वह पूर्ण सत्य नहीं है, भारत में भी लोकतंत्र की उत्पत्ति के संकेत प्राप्त होते है जो की पश्चिम के धारणा से भी प्राचीन है। बुद्ध काल में जो शासन व्यवस्थाएं थी उनमें संसदीय लोकतंत्र की सभी प्रक्रियाएं मौजूद थीं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के मूल में समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व है जो कि प्राचीन बौद्ध कालीन परम्पराओं में देखने को मिलता है। व्यक्ति विशेष की गरिमा और अस्तित्व के प्रति संवेदनशीलता ही मनुष्य का धर्म है। कर्मरत जीवन ही स्वस्थ समाज की धुरी है।
प्रो. विश्वनाथ मिश्र का वक्तव्य 'भारत के नागरिक और मौलिक कर्तव्य' पर था। प्रो. मिश्र ने कहा कि अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों के प्रति जागरूकता एवं उनका पालन आवश्यक है। आधुनिक समाज यांत्रिक समाज है। कर्तव्यशीलता का अनुकरण, पालन करके ही मानव अस्तित्व को संकट से बचाया जा सकता है। उनका मानना था कि संविधान में प्रारंभ से मौलिक कर्तव्यों का समावेश अंतर्भूत रूप से किया गया था, यद्यपि एक विशिष्ट भाग के रूप में 1976 में उन्हें संविधान में शामिल किया गया।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रो. प्रणवीर सिंह ने कहा कि भारतवर्ष ज्ञान की जननी है। विश्व के तमाम ज्ञानानुशासनों की रौशनी का मूल भारतवर्ष ही है। आवश्यकता है अपनी जड़ों की ओर लौटने एवं भारत को फिर से जगतगुरु के रूप में स्थापित करने की।
धन्यवाद ज्ञापन डॉ. जुगल किशोर दाधीच , अध्यक्ष, गाँधी एवं शांति अध्ययन विभाग ने किया, कार्यक्रम का संचालन डॉ. श्रीधर सत्यकाम, सहायक आचार्य, अर्थशास्त्र विभाग ने तथा आभाषीय मंच का सञ्चालन डॉ. दिनेश व्यास, सहायक आचार्य, समाजशास्त्र विभाग ने किया। कार्यक्रम में प्रो. प्रसून दत्त सिंह, अधिष्ठाता, मानवीकी संकाय, डॉ. कैलाश चन्द्र प्रधान, अध्यक्ष, अर्थशास्त्र विभाग और डॉ. सुजीत कुमार चौधरी, अध्यक्ष, समाजशास्त्र विभाग ने सक्रिय सहभाग किया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के आचार्य, सह आचार्य, सहायक आचार्य, शोधार्थी, विद्यार्थियों ने भौतिक रूप से सहभागिता की तथा देश के विभिन्न प्रान्तों से आभाषीय मंच के माध्यम से अनेक प्रतिभागियों ने कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ।

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