मातृभाषा का अर्थ भावनाओं का पारदर्शी प्रस्तुतीकरण : प्रो0 ए.के. सिंह
(त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सह वेबिनार
’’राष्ट्रीय शिक्षानीति: हिन्दी और अन्य मातृ भाषाएं’’ का समापन)
भावनाओं का पारदर्शी प्रस्तुतीकरण है मातृभाषा। स्थानीय स्तर पर हर भाव के एक शब्द हैं, भावनाओं को व्यक्त करने के लिए मातृभाषा में पर्याप्त शब्दावलियाॅ हैं। शब्दावलियों से संप्रेषण में सरलता होती है। यह बातें कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो0 राजेन्द्र सिंह (रज्जूभैया) विश्वविद्यालय, प्रयागराज के कुलपति प्रो0 प्रो. ए. के. सिंह ने कही। वह केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, भारत सरकार एवं नेहरू ग्राम भारती मानित विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सह वेबिनार ’’राष्ट्रीय शिक्षानीति: हिन्दी और अन्य मातृ भाषाएं’’ के समापन कार्यक्रम में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में बोल रहे थे। उन्होेंने आगे कहा कि आज माध्यम ही भाषा है। हमें अपने शब्दावलियों के ज्ञान को बढ़ाना चाहिए। किसी भी भाषा को सीखने के लिए इच्छा होनी चाहिए। भाषा और तकनीक साथ साथ चलती है। जीवन पर्यंत हम भाषाएं सीखते हैं। तकनीक के इस दौर में सोशल मीडिया के उपयोग में संयम जरूरी है। सांकेतिक भाषा प्राकृतिक भाषा है। विचार, भाव एवं क्रियात्मकता से भाषा मजबूत होती है। सारी भाषाएं अच्छी है, भाषा संचार का माध्यम है।
केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय के निदेशक प्रो. रमेश कुमार पांडे, ने अपने सम्बोधन में कहा कि भारत अपनी संस्कृति से पहचाना जाता है। मातृभाषा हमारे भावों विचारों को ही नहीं अपितु संस्कृति को भी व्यक्त करती है। भाषा का संस्कृति के साथ गहरा संबंध है। सारी प्रवृत्तियों का आधार वेद हैं। संस्कृत समस्त भारतीय भाषाओं की जननी है। विद्या का मार्ग राजमार्ग नहीं है यह कोई फ्लाईओवर भी नहीं है यह तप और परिश्रम का मार्ग है।
नेहरू ग्राम भारती मानित विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री जे0 एन0 मिश्र ने अपने उद्बोधन में कहा कि हिंदी भाषा प्रचार-प्रसार से आगे बढ़ रही है। हमारे विश्वविद्यालय के प्रमुख उद्देश्यों में हिंदी को आगे बढ़ाना भी है। आज की कटुता, कट्टरता कहीं न कहीं ज्ञान की कमी के कारण है। श्री मिश्र ने आगे कहा कि विश्वविद्यालय में आमंत्रित सभी विद्वानों से हमें सीखने का मौका मिलता है। कार्यक्रम में सर्वप्रथम स्वागत सम्बोधन करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राममोहन पाठक ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि संगोष्ठी में सभी अतिथियों का स्वागत है, यह तपस्थली, ज्ञान की स्थली है। ख्यातिलब्ध शिक्षाविदों एवं विद्वानों द्वारा इस संगोष्ठी सह वेबिनार में ’’राष्ट्रीय शिक्षानीति: हिन्दी और अन्य मातृ भाषाएं’’ पर विमर्श किया गया।
महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, गया बिहार के कुलपति प्रो. संजीव शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि सरलीकरण के नाम पर जिस प्रकार हिंदी का मानकीकरण किया गया है वह चिंतनीय है। साहित्य शब्द संपूर्ण रचना संसार है। साहित्य की परंपरा भारत की मातृभाषा में है। भाषाओं की सुंदरता भाव में निहित है, उसकी परंपरा संस्कृत, इतिहास, संस्कार, समुदाय को बचा कर रखा जा सकता है। हिंदी को पुनर्प्रतिष्ठित करने में राष्ट्रीय शिक्षानीति 2020 का महत्वपूर्ण योगदान होने वाला है। इस शिक्षा नीति ने मौलिकताओं को अवसर प्रदान किया है।
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा शिक्षा परिषद के पूर्व अध्यक्ष प्रो. पार्थसारथी ने कहा कि आज के आधुनिक जीवन पद्धति के कारण परिवार में बिखराव आते जा रहे हैं। सब ऑनलाइन हैं संवाद का समय किसी के पास नहीं है तो भाषा का विकास कैसे होगा।
भाषा में उच्चारण महत्वपूर्ण होता है। हिंदी को थोपना नहीं पढ़ाना है, हिंदी के साथ साथ प्रांतीय भाषाओं को भी महत्व देना चाहिए।
प्रो. सदानंद गुप्ता ने कहा कि भाषा भावनात्मक संवेगो का सबसे प्रमाणिक माध्यम है। देह जीव है तो वाणी आत्मा है। भाषा के बिना अस्मिता की पहचान सम्भव नहीं। भाषा संस्कृत की बुनियाद होती है, भारतियों को अपने भाषा के प्रति गौरव होना चाहिए। मातृभाषा वह माध्यम है जिसमें स्वाभाविक रूप से जन्म से अर्जित किया जाता है। अध्यापक का प्रशिक्षण का कार्य मातृभाषाओं में हो। विश्वविद्यालय के सारे कार्य मातृभाषा में होने चाहिए।
कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन प्रतिकुलपति डॉ एस.सी. तिवारी ने किया संचालन डॉ० मीता रतावा तिवारी ने किया।
कार्यक्रम में समापन सत्र से पूर्व पंचम सत्र में श्री ओम प्रकाश तिवारी, श्री चंद्रभूषण, डॉ० संजय मादार, श्री विष्णु राय, प्रो० आर०सी० त्रिपाठी, श्री अनुराग मिश्र, डॉ० आलोक कुमार त्रिपाठी ने अपने विचार रखे।
संगोष्ठी के समान में मुख्य रूप से डॉ० छाया मालवीय, डॉ० ममता मिश्रा, डॉ० प्रबुद्ध मिश्रा, डॉ० रमेश चन्द्र मिश्र, प्रो० शीलप्रिय त्रिपाठी, डॉ० विरेन्द्र मणि त्रिपाठी, डॉ० देव नारायण पाठक, डॉ० प्रतिभा शर्मा, पंकज यादव, विमलेश दुबे, डाँ अभिषेक मिश्रा, उज्जवल दास, अनुराग त्रिपाठी, डॉ० इंदल आदि मौजूद रहे।
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