राजसत्ता विद्या, विद्वान से बड़ी नहीं होती-कुलपति

मोतिहारी। संस्कृत विभाग, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय बिहार और मानव संसाधन विकास केंद्र, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर, मध्यप्रदेश के संयुक्त तत्वावधान में 'हिंदी एवं संस्कृत साहित्य-काव्यशास्त्र' विषयक द्विसाप्ताहिक राष्ट्रीय पुनश्चर्या कार्यशाला का उद्घाटन आभासीय मंच से किया गया है। कार्यशाला के नौवें दिन के द्वितीय सत्र के वक्ता के रूप में प्रो.संजीव कुमार शर्मा, माननीय कुलपति,महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार का सान्निध्य प्राप्त हुआ।
स्वागत वक्तव्य देते हुए कार्यशाला समन्वयक प्रो.प्रसून दत्त सिंह, अध्यक्ष,संस्कृत विभाग,महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार ने कहा कि इस कार्यशाला में माननीय कुलपति महोदय को सुनना साहित्य,भाषा को रक्त में महसूस करने जैसा है। यह एक शुभ अवसर है। 
वक्ता के रूप में माननीय कुलपति प्रो.संजीव कुमार शर्मा ने विस्तार से साहित्य,भाषा,कला की अनिवार्यता पर बात रखी। कालिदास का रचना वैशिष्ट्य वक्तव्य के केंद्र में रहा। प्रो.संजीव कुमार शर्मा ने कहा कि, मैं संस्कृत भाषा एवं साहित्य का अनुरागी हूँ। कालिदास का साहित्य हमेशा से मुझे आश्चर्यचकित करता है। अपनी विशिष्टता के साथ कालिदास समकालीन रचनाकारों एवं आने वालों सहस्त्रों वर्षों तक सभी से 'भिन्न' हैं। मैं जब-जब कालिदास को पढ़ता हूँ, मुझे 'भारत'  आभा,प्रकाश एवं ज्ञान अपने तीनों रूपों में महसूस होता है। 
कालिदास अपनी लेखिनी के स्पर्श मात्र से सबकुछ कह जाते हैं, अन्य अपने विशद वर्णन के उपरांत भी नहीं कह पाते। कम शब्दों में अधिक भाव प्रकट कर देने और कथन की स्वाभाविकता के लिए कालिदास प्रसिद्ध हैं। 'अकथ्य' को संकेत के माध्यम से कहने वाले कालिदास संस्कृत साहित्य का मान हैं, स्वाभिमान हैं। संस्कृत परंपरा के संवाहक कालिदास भारत के वैविध्य को प्रस्तुत करने का साहस रखते हैं, समय एवं समाज के साथ संवाद करने का साहस रखते हैं। कालिदास हमें दूर तक सोचने की दृष्टि देते हैं। संवाद,परिसंवाद की यह दृष्टि हमारी निर्मिति की प्रेरणा है। जीवन,समाज,व्यक्ति के मनोभावों को गहराई से जानने वाले कालिदास हमारी थाती हैं। हमें इस थाती को सहेजना है। इस दौरान कार्यशाला के सहभागी साथियों ने प्रश्नों के माध्यम से अपनी बात रखी। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. प्रीति पटेल ने किया।

Comments

  1. संजीवजी आपने बहुत बडी बात कह दी। ऐसे विद्वान जो राजसत्ता को दिशा देने की क्षमता रखते हो उन्हे आगे आने और आगे लाने की नितांत आवश्यकता है। अन्यथा प्रशासक सत्ता शिक्षानीति चलाएगी। माननीय प्रधानमंत्री के अवतार स्वरूप नये भारतके निर्माण कार्य को विद्वत्ता और चाणक्यनीति से आगे बढ़ानेमें विश्वविद्यालय, कुलपती और शिक्षक सर्जनता से सहभागी हो यही प्रार्थना। 🙏🏻

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