व्याकरण विशुद्ध शब्द निर्माण प्रक्रिया का सर्वोत्तम माध्यम है- प्रो. श्रीप्रकाश पाण्डेय
मोतिहारी। संस्कृत विभाग, महात्मा गाँधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी द्वारा ’ एतद्धि व्याकरणम्’ विषयक एक दिवसीय विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन किया गया । आज के इस एक दिवसीय विशिष्ट व्याख्यान के मुख्य वक्ता प्रो. श्रीप्रकाश पाण्डेय, संस्कृत विभाग, बी आर अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ़्फ़रपुर, बिहार तथा समस्त श्रोताओं का स्वागत संस्कृत विभाग के अध्यक्ष तथा मानविकी एवं भाषा संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो. प्रसूनदत्त सिंह ने किया।
अपने वक्तव्य में प्रो. श्रीप्रकाश पाण्डेय जी ने संस्कृत व्याकरण की महत्ता एवं विशिष्टता पर अपना गहन चिन्तन प्रस्तुत किया। अपने व्याख्यान में प्रो. पाण्डेय ने व्याक्रियन्ते विविच्यन्ते व्युपाद्यन्ते.. से व्याकरण की व्युत्पत्ति बताते हुए व्याकरण की व्यावहारिकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा कि संस्कृत व्याकरण में प्रकृति और प्रत्यय से निष्पन्न शब्द को ही साधु बताया। शिष्ट लोगों के द्वारा प्रयोग किये जाने के कारणों पर विचार करते हुए साध शब्दों की तार्किक और व्यावहारिक रूप से व्याख्या प्रस्तुत की। भर्तृहरि के वाक्यपदीय के मत ’शब्दब्रह्म’ के आधार पर व्याकरण की महनीयता को स्पष्ट किया।
अपने व्याख्यान में प्रो. पाण्डेय ने वाक्य और पद की विशिष्टता पर भी बल दिया। वाक्यार्थ और पदार्थ के व्यावहारिक प्रयोग की विशिष्टता को भी बताया। प्रो. पाण्डेय ने शब्दरूप, धातुरूप, पद, वाक्य, सन्धि, समास, विभक्ति, कारक, प्रकृति, प्रत्यय, उपसर्ग, निपात आदि बिन्दुओं का व्यावहारिक स्वरूप प्रस्तुत करते हुए अपने सूक्ष्म चिन्तन द्वारा व्याकरण की महनीयता को सुस्पष्ट किया। उन्होंने कारक पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए बताया कि कारक का विचार वाक्य में होता है और वाक्य में पद होता है। अपने व्याख्यान में प्रो. पाण्डेय ने व्यवहार में प्रयुक्त होने वाले साधरणीकरण, मानकीकरण, पक्कीकरण आदि शब्दों की निर्माण विधि को बहुत ही तार्किक रूप से प्रस्तुत करते हुए बोल-चाल की भाषा की शुद्धता के लिए व्याकरण ज्ञान की महनीयता को बताया। उन्होंने अपने वक्तव्य में समास-विधि,पदविधि, सन्धि-वर्णविधि आदि पर दृष्टिपात करते हुए यह बताया कि विशुद्ध भाषण के लिए हम सबको कम से कम सन्धि,समास और कारक, प्रकृति और प्रत्यय आदि का ज्ञान अवश्य जानना चाहिए।
तद्धित आदि प्रत्यन्यों की व्यावहारिकता पर सूक्ष्म दृष्टि उन्मेषित करते हुए प्रो. पाण्डेय ने लगभग ७०० तद्धित प्रत्ययों का उल्लेख किया। अपने वक्तव्य में प्रो. पाण्डेय ने व्याकरण के सभी गणों की प्रतिनिधि धातुओं पर अपना सूक्ष्म किन्तु ज्ञानवर्धक चिन्तन प्रस्तुत किया। इसके साथ ही उन्होंने परस्मैपद तथा आत्मनेपद की लगभग २००० धातुओं का भी उल्लेख किया। उन्होंने शब्द और धातुओं के सुन्बन्त और तिङन्त प्रत्ययों पर भी प्रकाश डालते हुए लोक में प्रयुक्त होने वाले शब्दों के विशुद्ध प्रयोग हेतु इनकी अपरिहार्यता को भी बताया। समास की महनीयता पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि समास भी प्रातिपदिक हैं और यह भी शब्द निर्माण की प्रविधि है। अपने व्याख्यान में प्रो. पाण्डेय ने स्त्री प्रत्ययों का उल्लेख करते हुए टाप्, डाप्,चाप्, ङीष्, ङीप्, ङीन्, ति आदि के अतिरिक्त भी अन्य स्त्री प्रत्ययों पर प्रकाश डाला। इस सन्दर्भ में उन्होंने समासान्त प्रत्ययों तथा शब्द प्रयोग में उनके ज्ञान की अनिवार्यता को भी बताया।
आज के इस एकदिवसीय विशिष्ट व्याख्यान का संचालन संस्कृत विभाग की शोधच्छात्रा सुपर्णासेन ने किया। इस एकदिवसीय अन्तर्जालीय व्याख्यान में उपस्थित समस्त विद्वद्गणों का धन्यवाद ज्ञापन विभाग के वरिष्ठ सह-आचार्य डॉ.श्याम कुमार झा ने किया। इस विशिष्ट व्याख्यान में महात्मा गाँधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. बिमलेश कुमार सिंह, उघम महाविद्यालय, मोतिहारी के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डॉ. विनोद तिवारी, संस्कृत विभाग सहायक आचार्य डॉ.बबलू पाल एवं श्री बिश्वजीत बर्मन तथा संस्कृत विभाग तथा अंग्रेजी विभाग के छात्रगण एवं शोधच्छात्र उपस्थित रहे।
Comments
Post a Comment