मातृभाषा का संरक्षण हमारा मूलभूत अधिकार
(त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सह वेबिनार ’’राष्ट्रीय शिक्षानीति: हिन्दी और अन्य मातृ भाषाएं’’ का द्वितीय दिन)
केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, भारत सरकार एवं नेहरू ग्राम भारती मानित विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सह वेबिनार ’’राष्ट्रीय शिक्षानीति: हिन्दी और अन्य मातृ भाषाएं’’ के द्वितीय दिन के तृतीय सत्र में मुख्य अतिथि के रुप में बोलते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग के प्रोफेसर ऋषिकांत पांडे ने कहा कि नई शिक्षा नीति में व्यक्ति के सर्वांगीण विकास की चर्चा की गई है। शिक्षा के मूल में कौशल का विकास होना आवश्यक है ज्ञान बढ़ने के साथ-साथ व्यक्ति के उत्तरदायित्व भी बढ़ते जाते हैं। ज्ञान और उत्तरदायित्व एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। आज के समय में विज्ञान और तकनीक का उद्देश्य मानवता का विकास करना होना चाहिए। सांस्कृतिक समानता के कारण ही एक भाषा का दूसरी भाषा में अनुवाद हो सकता है। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया के सहायक आचार्य डॉ किंशुक पाठक ने कहा कि लगभग तीन सौ मातृभाषा मिटने के कगार पर हैं। उन्होंने आगे कहा कि मातृभाषा से बच्चों में रचनात्मकता का विकास होता है। मातृभाषा का संरक्षण करना हमारा मूलभूत अधिकार है। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषाओं को शिक्षा का आधार बनाने पर बल दिया। स्टेला मारिस चेन्नई की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ श्रावणी भट्टाचार्य ने बोलते हुए कहा कि त्रिभाषा सूत्र के माध्यम से हिंदी संस्कृति को जोड़ना एक सुनहरा कदम है। तमिल भाषा के साहित्य के योगदान पर उन्होंने प्रकाश डाला उन्होंने आगे कहा कि अपनी मातृभाषा के साथ हिंदी को जोड़कर रखना चाहिए। नेहरू ग्राम भारती विश्वविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉक्टर देव नारायण पाठक ने अपने वक्तव्य में संस्कृत भाषा के सभी पहलुओं के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा सभी भाषाओं की जननी है चलते फिरते योग का नाम संस्कृत है। दुनिया की अधिकतर भाषाएं प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से संस्कृत से प्रभावित हैं । संस्कृत बोलने से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। डॉ रंजन सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि मनुष्य की आंतरिक शक्ति और ज्ञान का प्रदर्शन ही शिक्षा है। कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर संजय पांडे ने तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ ममता मिश्रा ने दिया।
संगोष्ठी सह वेबिनार के द्वितीय दिन चतुर्थ सत्र में डॉ. संदीप पुरोहित, सम्पादक राजस्थान पत्रिका, उदयपुर ने कहा कि जब तक किसी भी वस्तु का क्रियान्वयन उचित ढंग से नहीं होगा तबतक उसका विकास असम्भव है। साहित्यकार तेजपुर आसाम की डॉ वाणी बरठाकुर ने कहा कि मातृभाषा विचार अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। उन्होंने सार्थक अभिव्यक्ति हेतु मातृभाषा पर बल दिया। नेहरू ग्राम भारती मानित विवि के विशेष शिक्षा विभाग के डॉ श्यामसुंदर मिश्र ने अपने वक्तव्य में कहा कि मातृभाषा में बालक कठिन से कठिन प्रक्रिया को सरलता से सीख सकता है। अध्यक्षयीय उद्बोधन में डॉ परमात्मा कुमार मिश्र, सहायक आचार्य, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी ने कहा कि मातृभाषा जोड़ती है। इससे आत्मीयता का भाव आता है। उन्होंने संपर्क भाषा, माध्यम भाषा का जिक्र करते हुए कहा कि नई शिक्षा नीति का क्रियान्वयन इस प्रकार का हो कि मातृ भाषा और माध्यम की भाषा संवर्धित और विकासमान हो। कार्यक्रम में डॉ रजनीश त्रिपाठी, एडिशनल डिविजनल कमिश्नर, (आर पी एफ), फिरोजपुर ने नई शिक्षा नीति के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला। शोधार्थी शिवम उपाध्याय ने भी अपनी प्रस्तुति दी। संचालन डॉ० आदिनाथ ने तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो० विनोद पाण्डेय ने दिया।
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