स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को याद करने की जरूरत-प्रो. संजीव कुमार शर्मा
भारत के गौरवशाली इतिहास को यूरोपीय चश्मे से देखना गलत- डॉ. बालमुकुंद पाण्डेय
मोतिहारी। महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के 'एक भारत श्रेष्ठ भारत प्रकोष्ठ' द्वारा "आजादी का 75वां अमृत महोत्सव " के उपलक्ष्य में "भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में खुदीराम बोस की भूमिका" विषयक विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन चाणक्य परिसर स्थित पंडित राजकुमार शुक्ल सभागार में एवं आभासी मंच के माध्यम से किया गया।
अध्यक्षता एमजीसीयूबी के कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली के संगठन सचिव एवं प्राख्यात शिक्षाविद डॉ. बालमुकुंद पाण्डेय थे। वहीं राजकीय महाविद्यालय उच्चैन,भरतपुर के सह-प्राध्यापक एवं इतिहास संकलन समिति, राजस्थान के संगठन सचिव डॉ. धर्मचन्द चौबे कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि रहे। विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो. जी गोपाल रेड्डी का विशेष सानिध्य भी प्राप्त हुआ ।
अध्यक्षयीय उद्बोधन में माननीय कुलपति प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा ने खुदीराम बोस,चंद्रशेखर आजाद, बिरसा मुंडा, गांधीजी तथा अनेक स्वतंत्रता सेनानियों की चर्चा की ।
उन्होंने कहा कि भारत में स्वतंत्रता को लेकर क्रांति की शुरुआत 1857 से पहले ही हो चुकी थी जिसका आंशिक रूप 1852 में भी देखा जा सकता है।
स्वतंत्रता में जिन महापुरुषों ने बलिदान दिया इन सभी के योगदान को उजागर करना ही इस कार्यक्रम का लक्ष्य है। प्रोफेसर शर्मा ने कहा की क्रांति की शुरुआत शिक्षा और समाज सुधार क्षेत्रों में भी स्वामी दयानंद सरस्वती एवं विवेकानंद जैसे विद्वानों के प्रयास से शुरू हो चुकी थी और उसके फल स्वरुप आज हम स्वतंत्र भारत में जी पा रहे हैं।
स्वतंत्रता संग्राम में खुदीराम बोस के बलिदान एवं उनके संघर्ष को याद करते हुए उन्होंने कहा कि 11 अगस्त खुदीराम बोस का बलिदान दिवस है। जिन्होंने बहुत कम लगभग 18 वर्ष की उम्र में भारतीयों के बीच स्वतंत्रता की अलख जगायी और ब्रिटिश हुकूमत द्वारा उन्हें फाँसी दे दी गई। ऐसे महानायक को याद करना और उनके विचारों का संचार करना कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य है।
अपने उद्बोधन के दौरान विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो. जी गोपाल रेड्डी ने माननीय कुलपति एवं एक भारत श्रेष्ठ भारत प्रकोष्ठ के समन्वयक प्रो. रफीक-उल-इस्लाम को ऐसे महकती आयोजन की रूपरेखा रखने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया।
प्रति कुलपति प्रो. रेड्डी स्वतंत्रता संग्राम के अनेक पहलुओं पर चर्चा की जिसमें उन्होंने 1857 के युद्ध,अंग्रेजी शासन तथा आजादी किस लड़ाई में दिए गए बलिदानों को याद किया। स्वतंत्रता सेनानी खुदीराम बोस की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि खुदीराम बोस जिस तरह 15 वर्ष की आयु में स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे यह उनके साहस और वीरता को परिभाषित करता है। आगे जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे ही हमें भारत के और भी वीर सपूतों को याद करना चाहिए जैसे कि नानासाहेब, मंगलपांडे, चंद्रशेखर आजाद। उन्होंने खुदीराम बोस को तत्कालीन समय के युवाओं का प्रेरणास्रोत भी बताया ।
कार्यक्रम के बतौर मुख्य अतिथि डॉ. बालमुकुंद पांडेय ने माननीय कुलपति प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा, प्रति कुलपति एवं एक भारत श्रेष्ठ भारत प्रकोष्ठ के सभी सदस्यों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए इस कार्यक्रम को राष्ट्रीय निर्माण में एक अहम योगदान बताया।
डॉ बालमुकुंद पांडे ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की चर्चा करते हुए कहा कि उसमें लगभग 3.50 लाख लोगों को मृत्युदंड दिया गया जबकि सिर्फ दिल्ली में 27000 लोगों को मृत्यु के घाट उतार दिया गया । अपने भाषण के दौरान उन्होंने बंकिम चंद्र चटर्जी के आनंद मठ-वंदे मातरम की चर्चा की तथा सुभाष चंद्र बोस, उधम सिंह, विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती एवं हनुमान प्रसाद पोद्दार जैसे भारत के वीर सपूतों के बलिदान को भी रेखांकित करने का प्रयास किया। आज के समय की बात करते हुए उन्होंने कहा कि आज हम भारत को अपमानित करने वालों को ही इतिहास बना कर पढ़ रहे हैं। आगे जोड़ते हुए उन्होंने कहा की स्व के पुनरोत्थान का स्वप्न क्रांतिकारियों ने देखा था और इसके लिए चरम पर प्रयत्न किया था और इसी वजह से आज हम स्वतंत्र भारत में रह पा रहे हैं। उन्होंने निर्देशित करते हुए कहा कि हमें अपने इतिहास को यूरोपीय चश्मे से देखना बंद करना चाहिए।
विशिष्ट अतिथि डाॅ. धर्मचंद चौबे ने माननीय कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा को एक प्रखर वक्ता बताते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया तथा समस्त विश्वविद्यालय के प्रति आभार प्रकट किया । डॉ. चौबे ने खुदीराम बोस को बलिदान का साक्षात मिसाल बताया। स्वतंत्रता संग्राम के प्रारंभ की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इस संग्राम ने सोए हुए भारत को जगाया जिससे कि समाज में स्व-जागरण का उत्थान हुआ और यह स्व-जागरण का काल था । आगे बढ़ते हुए उन्होंने स्वामी विवेकानंद और स्वामी दयानंद सरस्वती की भी चर्चा की और कहा कि इस स्व-जागरण के प्रभाव से ही एक 15 साल का बालक खुदीराम बोस स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ा ।
शिक्षाविद डॉक्टर चौबे ने कहा की स्वतंत्रता संग्राम के वीरों को इतिहास में जितना जगह मिलना चाहिए उतना नहीं मिला जैसे कि युगांतर समिति के संस्थापक अरबिंदो घोष, सत्येंद्र नाथ बोस एवं मुजफ्फरपुर बम कांड में शामिल स्वतंत्रता सेनानी प्रफुल्ल चाकी । अंत में उन्होंने कहा कि हमें संकल्पित होकर एक साथ एक लक्ष्य तय कर भारत को श्रेष्ठ बनाने का प्रयास करना चाहिए ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि का परिचय 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' के सदस्य डॉ भावनाथ पांडेय एवं विशिष्ट अतिथि का परिचय डॉ. प्रीति वाजपेयी ने कराया ।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में खुदीराम बोस द्वारा रचित एक बांग्ला संगीत के माध्यम से उनके बलिदान को याद किया गया । स्वागत उद्बोधन के दौरान कार्यक्रम के संयोजक 'एक भारत श्रेष्ठ भारत प्रकोष्ठ' महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के समन्वयक प्रो. रफीक-उल-इस्लाम ने माननीय कुलपति एवं प्रति कुलपति समेत अतिथि गण का अभिनंदन किया । तत्पश्चात स्वतंत्रता सेनानी खुदीराम बोस के चित्र पर माल्यार्पण तथा मंत्रोच्चारण एवं दीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. विश्वेश वाग्मी ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ उमेश पात्रा ने किया।
कार्यक्रम में डीएसडब्ल्यू प्रो. आनंद प्रकाश, प्रो. प्रणवीर सिंह, प्रो. प्रसून दत्त सिंह, प्रो. अजय कुमार गुप्ता सहित 'एक भारत श्रेष्ठ भारत प्रकोष्ठ' के सदस्य डॉ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव, डॉ. जुगुल किशोर दधीचि, डॉ. प्रीति वाजपेयी डॉ. दिनेश व्यास, डॉ. अलका लहाल, डॉ. श्वेता सिंह, डॉ. रश्मि श्रीवास्तव, डॉ. भवनाथ पाण्डेय, डॉ. नरेंद्र कुमार सिंह, डॉ. विश्वेश वाग्मी, डॉ. उमेश पात्रा, संकायों के आचार्य एवं शोधार्थी एवं विद्यार्थी कार्यक्रम से जुड़े हुए थे।
कार्यक्रम गूगल मिट के माध्यम से एवं लाइव प्रसारण विश्वविद्यालय के आधिकारिक फेसबुक पेज, यूट्यूब के माध्यम से किया गया ।
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