डॉ. अनिल प्रताप गिरि साहित्य अकादमी की संस्कृत सलाहकार समिति के सदस्य नामित
मोतिहारी।भारत सरकार की सर्वोच्च साहित्यिक संस्था साहित्य अकादमी (राष्ट्रीय साहित्य संस्थान),नई दिल्ली ने महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के संस्कृत विभाग के सह-आचार्य डॉ.अनिल प्रताप गिरि को एक वर्ष के लिए अपनी संस्कृत सलाहकार समिति के माननीय सदस्य के रूप में नामित किया है।डॉ. गिरि, माननीय सदस्य के रूप में 31 दिसंबर 2022 तक साहित्य अकादमी को अपनी बहुमूल्य सेवाएँ एवं अकादमिक परामर्श प्रदान करेंगे।
संस्कृत परामर्श समिति के सदस्य के रूप में नामित होने पर महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो.संजीव कुमार शर्मा ने डॉ.अनिल प्रताप गिरि को बधाई एवं शुभकामनाएं प्रदान करते हुए कहा कि यह महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए बड़े ही गौरव की बात है कि मेरे द्वारा नव स्थापित संस्कृत विभाग अपनी मेधा एवं परिश्रम से दिनानुदिन यश एवं प्रतिष्ठा के शिखर पर प्रवर्तमान है। कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने कहा कि मुझे पूरा विश्वास है कि महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय का संस्कृत विभाग संस्कृत के क्षेत्र में अपनें विशिष्ट योगदान के कारण संपूर्ण संस्कृत जगत् में सुपरिचित रूप से यथाशीघ्र जाना जाएगा। इस सन्दर्भ में साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा जारी प्रपत्र को महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा के द्वारा दिनांक 18 जनवरी 2022 को कुलपति आवास, मोतिहारी, बिहार में विश्वविद्यालय के उच्च पदाधिकारियों एवं संस्कृत विभाग के शिक्षकों के समक्ष डॉ. अनिल प्रताप गिरि ने ग्रहण किया । संस्कृत विभाग को वैश्विक रूप में पहचान दिलाने के क्रम में डॉ. अनिल प्रताप गिरि को महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के विशेष पदाधिकारी (प्रशासन) प्रो. राजीव कुमार तथा विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो. प्रणवीर सिंह एवं संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष तथा गांधी भवन परिसर के निदेशक प्रो.प्रसून दत्त सिंह ने हार्दिक बधाई दी।
इस अवसर पर डॉ.अनिल प्रताप गिरि द्वारा संस्कृत काव्य शास्त्र का महनीय ग्रन्थ पंडितराज जगन्नाथ द्वारा विरचित रसगंगाधर की महत्वपूर्ण टीका मधुसूदनी विवृति की नव्यन्यायाभाषा को विश्लेषित करने वाली नवप्रकाशित पुस्तक नव्यन्यायभाषाप्रविधिविचारः(मधुसूदनीविवृतिरसगङ्गाधराधारितः) का भी माननीय कुलपति के द्वारा विमोचन किया गया। इस ग्रन्थ में पंडित मधुसूदनशास्त्री द्वारा लिखित मधुसूदनी-विवृति की नव्यन्याय-भाषा की प्रविधि को विश्लेषित किया गया है तथा संस्कृत काव्य शास्त्र के इतिहास में सर्वप्रथम पंडितराज जगन्नाथ द्वारा प्रयुक्त नव्यन्याय भाषा की काव्यशास्त्र में उपादेयता एवं तत्कालिक अपरिहार्यता को विस्तार से व्याख्यायित किया गया है। लोकार्पण के इस अवसर पर भी संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष सहित,सहायक-आचार्य डॉ.विश्वेश वाग्मी, डॉ. बबलू पाल, श्री विश्वजित वर्मन एवं विश्वविद्यालय के उच्च पदाधिकारी उपस्थित रहे।
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