प्रेस दिवस: भारतीय मीडिया की वर्तमान स्थिति
आवाज-हीन की आवाज हूं, लोकतंत्र का मैं साज हूं
जनता की आलोचनाओं का हर बार बनता मैं शिकार हूं
हां! मैं एक पत्रकार हूं।
राष्ट्रीय प्रेस दिवस हमेशा 16 नवंबर को मनाया जाता है। मीडिया जो भारतीय लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में कार्य करती है। लेकिन विगत कुछ सालों में भारतीय मीडिया ने काफी उतार चढ़ाव का सामना किया है। राजनीतिक दलों के द्वारा लगाए गए तोहमत, गोदी मीडिया, मोदी मीडिया, दरबारी मीडिया जैसे शब्द आज भी पब्लिक डोमेन में है। बात उस समय से ज्यादा प्रभावी हो जाती है जब एका एक ये खबर आती है कि एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया तब से मीडिया जगत में चर्चाओं का दौर चल पड़ता है कि आखिर रवीश के इस्तीफा का कारण क्या है। सभी लोग अपने अपने विचार और कारणों को प्रकट करते है और एक ऐसा माहौल बना दिया जाता है की मीडिया की स्वतंत्रता बस नाम भर हीं रह गया। पत्रकारिता अपने समाप्ति की ओर अग्रसर है । वैश्विक पटल पर भी भारतीय मीडिया की छवि धूमिल करने का पुरजोर कोशिश किया गया । उसके साथ हीं बिहार में एक यूट्यूबर पत्रकार मनीष कश्यप पर एनएसए लगाकर उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है। बोलने की आजादी की दुहाई देने वाले सभी लोग चुप रहकर तमाशा देखते रह जाते हैं । उसके साथ आतंकवादी जैसे सलूक किया जाता है,जो सत्य और सही दिखाने का प्रयास करते है। भारतीय मीडिया पर आपातकाल से भी ज्यादा पाबंद लगाने का कोशिश मौजूदा समय में किया जा रहा है। पाबंद वो लगा रहें जो हमेशा से बोलने की आजादी का पक्षधर रहें है। लेकिन हाल में ही देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस जो 70 साल के करीब सत्ता में रही उसने 14 मुख्यधारा के पत्रकारों के शो का बहिष्कार करने का एलान करते हुए उनके नामों की सूची जारी की । जिसमें अमीश देवगन, चित्रा त्रिपाठी, शिव अरूर रुबिका लियाकत,सुशांत सिन्हा, नविका कुमार,अशोक श्रीवास्तव, सुधीर चौधरी जैसे और भी पत्रकार शामिल है। कांग्रेस का आरोप ये था कि ये पत्रकार निष्पक्ष नहीं है,ये विपक्ष के आवाज को दबाते है तथा सच नहीं दिखाते है । दुर्भाग्य से अब राजनीतिक पार्टियां पत्रकारों की निष्पक्षता का मानदंड तय कर रही है लोकतंत्र में वैचारिक मतभेद के लिए जगह होती है लेकिन मतभेद के नाम पर डायलॉग से भागना लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल नहीं है। भले आप उनके विचारों से सहमत न हो तब भी आप अपनी बात रख सकते है, ये खूबसूरती ही लोकतंत्र को मजबूत बनाती है। लेकिन मौजूदा समय में पत्रकारों की स्थिति काफी दयनीय हो रही है सत्ता की हनक उनके विरोध में अग्रसर है। अब पत्रकार वर्ग को ये सोचना होगा कि मौजूदा वक्त में वैचारिक मतभेद को छोड़ अपने असित्व को पुनर्स्थापित करें और नेताओं के प्रमाण पत्र को कूड़ेदान में डाल कर उनको अपनी उपस्थिति का अनुभव कराएं।
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